पहली तारीख और तनख्वाह की मोहब्बत: एक मजेदार शायरी जो दिल छू ले
"पहली तारीख और तनख्वाह की मोहब्बत: एक मजेदार शायरी जो दिल छू ले"
शायरी 1: महीने की पहली तारीख, दिल में उमंग लगी है,
तनख्वाह जैसे पुरानी ओर मोहब्बत की, फिर से याद आती है।
ATM की पर्ची देख, आँखें नम हो जाती हैं,
उड़नछू होकर सब सपने ले जाती है।
शायरी 2: तनख्वाह,आई नही के प्लान बन जाते हैं,
EMI, कराया, उधार सब याद आ जाता हैं,
खुद के लिए कुछ बचे तो गजब,
वरना तनख्वाह सिर्फ़ हिसाब बन जाती है।
शायरी 3: हर महीने एक ही कहानी, तनख्वाह आई और गई, सपनों की लिस्ट वही बस जेब थोड़ी ओर खत्म हुई।
मजदुरी के इस चक्रव्यू में,
बचत रावण बनकर रोज़ जीत गई।
शायरी 4: तनख्वाह, मिलते ही दिल शेर बनता है,
ऑनलाइन शॉपिंग में हाथ फिसलता है।
मगर हफ्ते भर में ही हाल बेहाल,
फिर मैगी-नमकीन पर चलता है साल।
शायरी 5: तनख्वाह, से ज्यादा तो उम्मीद बड़ी होती हैं,
हर महीने ये जंग कुछ ओर कठिन होती है।
दिल कहे गुम आओ, दिमाग बोले EMI,
जिंदगी की ये जुगलबंदी बड़ी बारी होती है।
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