गरीब की दर्दनाक 5 शायरी sachi shayeri पर

 गरीब की दर्दनाक 5 शायरी sachi shayeri पर


 शायरी 1:

गरीब की दर्दनाक शायरी, जिसने बचपन रोटी के लिए बेच दिया, वो अब भी ख्वाबों में भूखा है।

कभी मुफलिसी की धूप में जला, अब छांव भी उसे रूखा है।

शायरी 2:

गरीब की दर्दनाक शायरी, फटे कपड़ों में शराफत रखता है,

दौलत नहीं, मगर ग़ैरत रखता है। वो गरीब ही सही मगर, समझ ले, ईमान की बड़ी दौलत रखता हो।

शायरी 3:

गरीब की दर्दनाक शायरी, सपनों की कीमत कौन समझे,

जब पेट ही हर रोज खाली है। वो मुस्कान भी गिरभी रख दे,

जिसका दर्द भी ताली हो।

शायरी 4:

गरीब की दर्दनाक शायरी, रोटी की तलाश में निकला है,

हर मोड पे ठोकर खाता है। नसीब उसके साथ नहीं लेकिन,

हौसलों से टकराता है।

शायरी 5:

गरीब की दर्दनाक शायरी, अमीरों की महफ़िल में नहीं,

चलता, पर दिलों में राज करता है। गरीब है,

मगर खुद्दार इतना के हालात से भी इनकार करता है।


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